ग्वालियर। भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी कर दी है । पहली सूची में भी 39 नाम थे और सभी वे सीटें थी जहां बीजेपी लंबे समय से नही जीती थी और सोमवार को जारी सूची में भी 39 नाम हैं लेकिन इनमे बीजेपी ने अपने तीन कद्दावर केंद्रीय मंत्री और पांच अन्य वरिष्ठ सांसदों के नाम है । यह सूची जारी करके बीजेपी ने संदेश दिया है कि वह करो या मरो की रणनीति पर काम कर रही है।
कानोकान नही हुई खबर
कल मोदी भोपाल में थे और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर, प्रह्लाद पटेल,फग्गन सिंह कुलस्ते और वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय उनके साथ मंच पर ही थे लेकिन इनमे से कोई नही भांप सका कि मोदी के मन मे क्या चल रहा है । मोदी ने अपना दौरा खत्म कर दिल्ली कूच किया और उधर से बीजेपी की सूची आ गयी। इसमें तोमर, पटेल,विजयवर्गीय अचानक राष्ट्रीय राजनीति से प्रदेश की सियासत में आ चुके थे । स्वयं कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि वे नाम देखकर चौंक पड़े ।
कांटो भरा है रास्ता
अगर मोदी के इस फैसले पर गौर करे तो पाएंगे कि बीजेपी ने अपने केंद्रीय मंत्री और सांसद जैसे कद्दावर नेताओं को अचानक विधानसभा में उतारकर उनके लिए कोई फूलों की सड़क नही बिछाई है बल्कि उनका मार्ग
कंटकाकीर्ण है । अगर सूची देखें तो बड़े नेताओं को अधिकांशतः उन सीट पर दांव पर लगाया गया है जहां बीजेपी का कब्जा नही है सिर्फ प्रह्लाद पटेल ही है जिन्हें उनके भाई के कब्जे वाली सीट पर उतारा गया है । मसलन केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर को मुरैना की दिमनी सीट से उतारा गया है । तोमर क्षत्रियों के बाहुल्य वाली सीट दिमनी में अभी कांग्रेस का कब्जा है और चार बार से यहां बीजेपी हार रही है। कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर एक से उतारा गया जहां से कांग्रेस के संजय शुक्ला मैदान में हैं । रीति पाठक को मूत्रकाण्ड के केदार शुक्ला का टिकट काटकर मैदान में उतारा गया है क्योंकि वहां हालात खराब हैं। जबलपुर में दिग्गज सांसद राकेश सिंह को जबलपुर पश्चिम से टिकट दिया गया है। यह सीट कॉंग्रेस के कब्जे में है और भनौत परिवार का यहां अच्छा प्रभाव है। इसी प्रकार नर्मदापुरम सीट से सांसद उदयप्रताप सिंह को गाडरवाड़ा से उतारा गया है जिस पर कांग्रेस का कब्जा है।
1984 के राजीव गांधी के फार्मूले की झलक
बीजेपी की इस सूची से अस्सी के दशक में कांग्रेस द्वारा अपनाईँ रणनीति की झलक मिलती है। 1984 में राजीव गांधी ने तब के विपक्ष के बड़े नेताओं को हराने के लिए चौंकाने वाले चेहरे उतार दिए थे। अटल विहारी वाजपेयी के खिलाफ माधव राव सिंधिया, हेमवती नंदन बहुगुणा के खिलाफ अमिताभ बच्चन इसके उदाहरण थे। इसका नतीजा यह निकला था कि उस संसद में विपक्ष का कोई भी नेता जीतकर नही पहुंच सका था ।