कलकत्ता। भारतीय शास्त्रीय संगीत के बादशाह और मखमली आवाज के जादूगर उस्ताद राशिद खान साहब अब नही रहे । महज 55 साल की अल्पायु में ही कलकत्ता में बीते रोज एक हॉस्पिटल में अपनी अंतिम सांस ली । वे लंबे समय से प्रोस्टेट कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे। उनका उपचार कर रहे डॉक्टर्स का कहना है कि वे रिकवर कर रहे थे। उनकी दिनचर्या सामान्य हो गई थी और वे नियमित गायन अभ्यास भी कर रहे थे लेकिन कल मंगलवार को अचानक उनकी हालत बिगड़ गई और फिर उन्हें बचाया नही जा सका।
यूपी के बदायूं में जन्मे राशिद खान का जन्म 1 जुलाई 1968 को हुआ था। वे रामपुर सहसवान घराने से थे जिसकी स्थापना उनके परदादाजी उस्ताद इनायत खान ने की थी। 11 वर्ष की उम्र से प्रस्तुतियां दे रहे राशिद खान ने महज 14 वर्ष की आयु में कोलकाता की प्रसिद्ध आईटीसी संगीत रिसर्च अकादमी जॉइन कर ली थी। पंडित भीमसेन जोशी ने उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए कहा था कि यह लड़का भारतीय शास्त्रीय संगीत का भविष्य है। राशिद खान ने उस्ताद निसार हुसैन खान और गुलाम मुस्तफा खान से संगीत की बारीकियां सींखी और फिर निरन्तर ऊंचाइयों की तरफ बढ़ते गए।
सन 2006 में पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी अवार्ड जीतने के बाद उन्हें 2022 में पद्मभूषण भी मिला। शास्त्रीय संगीत के साथ उन्होंने बॉलीबुड की कई फिल्मों के गीतों को अपनी मखमली आवाज़ दी। 2007 में रिलीज हुई करीना कपूर अभिनीत फिल्म में उनके द्वारा गाया गया गीत – जाओगे तुम मेरे साजना , आज भी हर पीढ़ी की जुबान पर रहता है। इसके अलावा किसना द वारियर पोएट में – काहे उजाड़ी मेरी नींद .. और माई नेम इज खान के गीत – अल्लाह ही रहम और फ़िल्म शादी में जरूर आना में उनका गया गीत – तू बन जा गली संग , खूब लोकप्रिय रहे । उनके गीतों से नई पीढ़ी की भारतीय शास्त्रीय संगीत में रुचि बढ़ी।
उस्ताद राशिद खान का इतनी कम उम्र में दुनिया से फानी होना दुःखद तो है ही भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक बड़ी क्षति है जो सदैव खलेगी भी और अपूरणीय रहेगी।