दिल्ली। इस वर्ष दीपावली के त्यौहार को लेकर प्रदेश भर में व्यापारियों एवं अन्य लोगों के बीच तिथि पर असमंजस की स्थिति बनी हुई है—क्या दिवाली 31 अक्तूबर को मनाई जाए या 1 नवंबर को? इस वर्ष कार्तिक अमावस्या दो दिनों में पड़ रही है और दिवाली कार्तिक अमावस्या को ही मनाई जाती है, इसलिए दिवाली को लेकर एक भ्रम बना हुआ है।दिवाली देश का सबसे बड़ा त्यौहार है और प्रदेश व भारत में व्यापार और उद्योग के लिए सबसे महत्वपूर्ण पर्व भी है। इस दिन श्री गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा प्रदेश भर के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और घरों में बेहद उल्लास और उमंग से की जाती है।सदियों से यह पर्व व्यापार के लिए बेहद शुभ माना जाता रहा है।
आध्यात्मिक कमेटी ने बताई वजह
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) की वैदिक एवं आध्यात्मिक कमेटी के राष्ट्रीय संयोजक और उज्जैन के प्रसिद्ध वेद मर्मज्ञ आचार्य दुर्गेश तारे ने इस बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि इस वर्ष दिवाली का त्यौहार 31 अक्तूबर 2024 को ही मनाना शास्त्र सम्मत है। दीपावली रात्रिकालीन महापर्व है,और इस वर्ष 31 अक्तूबर,बृहस्पतिवार को अमावस्या तिथि दिन में 3:40 बजे से आरंभ हो रही है।शास्त्रों के अनुसार दीपावली प्रदोष काल और महारात्रि (निषितकाल) में अमावस्या तिथि होने पर ही मनानी चाहिए,इस कारण से 31 अक्तूबर को दिवाली मनाना ही श्रेष्ठ और शास्त्र सम्मत है क्योंकि प्रदोष काल अमावस्या में 31 अक्तूबर को ही पड़ रहा है।
इस संबंध में आचार्य तारे ने “शब्दकल्पद्रुम” से उद्धृत श्लोक का उल्लेख करते हुए कहा:
अमावस्या यदा रात्रों दीवाभा गे चतुर्दशी
पूजनीया तदा लक्ष्मी वीजेया सुखरात्रिकाह
उन्होंने बताया कि यह श्लोक तर्क वाचस्पति तारानाथ भट्टाचार्य के प्रसिद्ध ग्रंथ “वाचस्पत्यम” में भी उद्धृत है। इसमें कहा गया है कि यदि चतुर्दशी भी हो, तो प्रदोष व्यापिनी अमावस्या को ही सुखरात्रिका अर्थात दीपावली कहा जाता है।
आचार्य तारे ने यह भी कहा कि स्थिर लग्न और प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव प्रदोष काल में हुआ था। स्थिर लग्न में लक्ष्मी पूजन करने से महालक्ष्मी की कृपा स्थायी रहती है। 1 नवंबर को अमावस्या प्रदोष काल से पहले ही समाप्त हो जाएगी, इसलिए 1 नवंबर को दिवाली मनाना शास्त्रों और परंपराओं के अनुसार उचित नहीं है। इसलिए, दिवाली 31 अक्तूबर को ही मनाई जानी चाहिए।
राष्ट्रीय संगठन मंत्री ने ये कहा
कैट के राष्ट्रीय संगठन मंत्री एवं प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र जैन ने बताया कि प्राप्त जानकारी के अनुसार अयोध्या धाम तथा धर्म नगरी काशी में भी दिवाली 31 अक्तूबर को ही मनाई जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री आचार्य स्वामी जितेंद्रानन्द जी सरस्वती ने सूचित किया है कि दिवाली 31 अक्तूबर को ही मनाना शास्त्र सम्मत है ।
कैट प्रदेश भर के व्यापारिक संगठनों को परिपत्र भेजकर 31 अक्तूबर को ही दिवाली मनाने की सलाह दी है।
आचार्य तारे ने बताया कि दिवाली महापर्व की शुरुआत आज अहोई अष्टमी 24 अक्तूबर से होगी तथा इस श्रृंखला में धनतेरस 29 अक्तूबर, दिवाली 31 अक्तूबर, गोवर्धन पूजा 2 नवंबर, भाई दूज 3 नवंबर तथा उसके बाद छठ पूजा करते हुए और तुलसी विवाह 12 नवंबर को मनाते हुए दिवाली का महापर्व समाप्त होगा और उसके तुरंत बाद शादियों का सीजन शुरू हो जाएगा।