प्रसंगवश / देव श्रीमाली
पवन जैन ,मेरे उन चुनिंदा दोस्त पुलिस अफसरों में हैं जो मुलाकात के पहले दिन से मेरे दिल के करीब रहे हैं। ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा दोनो से उन्होंने आखिरी दिन तक याराना रखा और सहजता और सादगी को तो मानो अपना ओढ़ना और बिछाना ही बना रखा था।
- हम दोनों की मुलाकात लगभग ढाई दशक पहले हुई थी जब वे नए – नए आईपीएस बने थे और मैं भी अपनी पत्रकारिता के उठान पर था। लेकिन मेरी दोस्ती हुई एक खबर की बजह से । बात 1993 की है। वे संभवतः ग्वालियर की किसी बटालियन में कमांडेंट थे और मैं दैनिक भास्कर में महानगर प्लस का इंचार्ज । तब मेरे दो कॉलम भी आते थे । एक क्राइम पर आधारित लोकप्रिय कॉलम “परत दर परत” दूसरा “बा – अदब ” यह जीवन मे कुछ अद्भुत करने वाले अफसर की जिंदगी की यात्रा पर था। मैंने पवन जैन के बंगले की सादगी और उनके व्यवहार को देखा तो दंग रह गया। उनके जुझारूपन की हकीकत सुनी तो लगा शायद दुष्यंत कुमार ने ऐसे ही लोगों के बारे में लिखा था – एक चिंगारी कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तो ..इस दिये में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
- आज पूरे देश मे हिंदी में पढ़ाई की बात हो रही है लेकिन राजाखेड़ा कस्बे का यह लडका अंग्रेजी में अच्छा होते हुए भी नब्बे के दशक में यूपीएससी से भिड़ गया था कि वह तो फिजिक्स का पैपर हिंदी में ही देंगे। जब संगठन नही माना तो वह कोर्ट पहुंच गए। संगठन कोर्ट में बोला – फिजिक्स की किताबें ही हिंदी में नही हैं । पवन जैन ने कहा वे पूरा सिलेबस हिंदी में लिखकर देंगे। उन्होंने ऐसा किया भी और आईपीएस भी बने। मैंने बा-अदब का शीर्षक दिया – पढ़ी भौतिकी ,रचा इतिहास।
- इसके बाद हम लोग पारिवारिक दोस्त हो गए। यह मित्रता पद पर आधारित नही थी। मुझे उनसे कभी कोई शासकीय काम नही पड़ा और उम्मीद थी कि अगर अनुचित होगा तो वे साफ इंकार भी कर देंगे लेकिन लंच के लिए बंगले लेकर ही जायेंगे। हम दोनों एक दूसरे के पारिवारिक आयोजनों में शरीक होते रहे। पिछले माह वे महज एक घण्टे के लिए ग्वालियर आये तो उन्होंने नाश्ते के लिए बुलाया। हम लोग डॉ भसीन के यहां बैठे । बातें की।
- पवन जैन काजल की कोठरी से बेदाग निकले इसमें उनकी दृढ़ निष्ठा तो रही ही है लेकिन उनकी पत्नी का उनके विचारों के साथ खड़े रहने का भी बड़ा योगदान रहा।ईमानदारी, सादगी ,सहजता में दोनो में कौन आगे है ढाई दशक की मित्रता में मेरे लिए आकलन कठिन है। यही बात ईमानदारी को लेकर भी है। उनकी बेटियों ने भी अपनी मम्मी -पापा की इस विरासत को संभालकर रखा तभी तो वे काजल की कोठरी से बेदाग निकलने में सफल हो सके होंगे । मुझे लगता है इसकी वजह इस पूरे परिवार का धार्मिक, आस्थावान और साहित्यिक होना है।
- 31 जुलाई को वे होमगार्ड के डायरेक्टर जनरल के रूप में रिटायर हो गए। उनका विदाई समारोह ऐतिहासिक और भावनात्मक था। उन्हें विदाई देने प्रदेश के डीजीपी से लेकर होमगार्ड का नगर सेवक तक मौजूद था और उन्होंने बड़े ही करीने से खुली जीप को फूलों से सजाया था और जीप को अपने हाथों से रस्से से खींचकर उनकी गाड़ी तक पहुंचाया । सब भावुक थे पुलिस मुख्यालय से सादगी , ईमानदारी और सहजता की परम्परा की विदाई से । भला पुलिस में शब्दों की त्रिवेणी आसानी मिलती भी कहाँ है?
नए जीवन में प्रवेश की हार्दिक शुभकामनाएं