ग्वालियर। जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर के गालव सभागार में पांच दिवसीय अखिल भारतीय महाकवि भवभूति समारोह का शुभारंभ जिला शिक्षा अधिकारी अजय कटियार के मुख्य आतिथ्य में हुआ।कार्यक्रम की अध्यक्षता अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो.जे.एन गौतम ने की। प्रो.जे.एन. गौतम ने अपने अभिभाषण में भारतीय परिक्षेत्र में संस्कृत भाषा की महत्ता के बारे में बताया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित कटियार ने भवभूति साहित्य की महत्ता के बारे में बताया। इस कार्यक्रम के संयोजक एवं महाकवि भवभूति शोध एवं शिक्षा समिति के अध्यक्ष डॉ.बालकृष्ण शर्मा ने इस समारोह की पांच दिवसीय रूप-रेखा के बारे में बताया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में केआरजी कॉलेज ग्वालियर की आचार्य डॉ.कृष्णा जैन उपस्थित थीं। उद्घाटन सत्र के पश्चात अन्तर्विद्यालयीन प्रतियोगिताएँ आयोजित की गईं इसमें ग्वालियर के विभिन्न विद्यालयों महाविद्यालयों के लगभग 100 छात्र-छात्राओं ने विभिन्न 05 विधाओं में भागीदारी करते हुए अपनी कला-कौशल का प्रदर्शन किया।
आज की प्रतियोगिताओं में निर्णायक के रूप में डॉ.कृष्णा जैन,प्रेम शंकर अवस्थी,राजेश कुमार, डॉ.नीरज शर्मा, डॉ.अशोक विश्नोई, डॉ.आर.के.शर्मा, डॉ.ज्योत्सना सिंह, डॉ.राखी वशिष्ठ, डॉ.विकास शुक्ल आदि उपस्थित रहे। आज सम्पन्न हुई प्रतियोगिताओं में हिन्दी भाषण प्रतियोगिता में आर्या शर्मा, संस्कृत भाषण प्रतियोगिता में पलाश सराढ़ा,सस्वर श्लोक पाठ प्रतियागिता में श्रेयांश राय,हिन्दी वाद-विवाद प्रतियोगिता में वैष्णवी भदौरिया, संस्कृत निबंध लेखन प्रतियोगिता में वैष्णवी आर्य ने प्रथम स्थान प्राप्त किया।कार्यक्रम का संचालन डॉ.निरूत्तम त्रिपाठी एवं आभार प्रदर्शन डॉ.अमित शर्मा ने किया। इस अवसर पर ग्वालियर सम्भाग के विभिन्न महाविद्यालयों एवं विद्यालयों के शिक्षक एवं छात्र-छात्राएँ बड़ी संख्या में उपस्थित थे। इसी क्रम में दिनांक 21 जनवरी को अन्तर्महाविद्यालयीन प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा। संस्कृत के सभी विद्वानों, विदुषियों एवं संस्कृतानुरागियों से आग्रह है कि बड़ी संख्या में जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर के गालव सभागार में उपस्थित होकर संस्कृत का गौरव बढ़ायें और भवभूति के साहित्य का लाभ उठायें।
आखिर कौन थे भवभूति
-देव श्रीमाली –
भवभूति संस्कृत के महान कवि और नाटककार के साथ ही उदभट विद्वान थे। उनके नाटकों को महाकवि कालिदास के नाटकों के समकक्ष माना जाता है। उनके जन्म और वंश से जुड़े सवालों का जवाब उनके द्वारा लिखे गए “महावीर चरित”की प्रस्तावना में लिखा है । उसके अनुसार वे विदर्भ देश पदमपुर नामक स्थान के निवासी भट्टगोपाल के पोते थे। उनकी माता का नाम जातिकर्णी और पिता का नाम नीलकंठ था था। अपना उल्लेख ‘भट्टश्रीकंठ पछलांछनी भवभूतिर्नाम’ से किया है। इनके गुरु का नाम ‘ज्ञाननिधि’ था। उन्होंने अपने जन्मस्थान का उल्लेख किया है वह पदमपुर पवाया वर्तमान में ग्वालियर जिले में ही है । यह तब संस्कृत शिक्षा का बड़ा केंद्र था और नाग राजाओं की राजधानी जिसे भारत का पहला हिन्दू राष्ट्र भी कहा जाता है ।
महान रचना कार थे भवभूति
शोध बताते हैं कि भवभूति लगभग 700 ई पहले के एक महानतम संस्कृत नाटककार थे। उनके द्वारा लिखे नाटक अपने रहस्य और सजीवता के चित्रण के लिए जाने जाते है । विद्वानों का मानना है कि भवभूति के लिए नाटक कालिदास के नाटकों के समकक्ष है ।
राजा यशोवर्मन के दरबार मे थे
भवभूति वर्तमान कन्नौज के राजा यशोवर्मन के दरबार मे पदस्थ थे । तब इस विदर्भ राज्य की सीमाएं महाराष्ट्र तक फैली हुईं थी ।
भवभूति के ये तीन नाटक सबसे अधिक चर्चित हैं
भवभूति अपने तीन नाटकों के लिए विशेष रुप से प्रसिद्ध रहे है ये हैं – महावीरचरित- (महानायक के पराक्रम), जिसमें रामायण के रावण – वध से लेकर भगवान श्रीराम के राजतिलक तक की मुख्य घटनाएँ सात अंको में वर्णित हैं। इसके अलावा मालती माधव- दस अंकों का पारिवारिक नाटक है, जिसमें भावोत्तेजक, किंतु कहीं–कहीं असंभव सी घटनाएँ हैं। भवभूति का एक अन्य चर्चित नाटक है उत्तर रामचरित । इस नाटक में राम कथा, उनके राजतिलक से लेकर सीता के वनवास और अंत में दोनों के अंतिम मिलन तक की कथा को सिलसिलेवार दिखाया गया हैं। भवभूति इस अंतिम नाटक में यद्यपि उनके बाकी दो नाटकों की अपेक्षा घटनाक्रम काफ़ी न्यून है लेकिन इसमें भवभूति की चरित्र चित्रण की प्रतिभा और रहस्य व नाटकीय उत्कर्ष की क्षमता अपने चरम सीमा पर है.
आज भी बना है नाट्यगृह
विद्वान और लेखक प्रमोद भार्गव बताते हैं कि पवाया पद्मावत पहले ब्राह्मण शासकों का केंद्र था। इस दौरान यहाँ संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा दिया गया और फिर पूरे देश में संस्कृत शिक्षा का बड़ा केंद्र बन गया। देश भर से विद्यार्थी यहाँ पढ़ने आने लगे। इस दौरान यह साहित्य,नाटक ,कला ,संस्कृति और अधय्त्म का बड़ा केंद्र रहा। बाद में इस पर नाग राजाओं ने कब्ज़ा कर लिया। इस दौरान उन्होंने इसे हिन्दू राष्ट्र घोषित कर स्वयं की मुद्रा भी प्रचलित की।
अनेक किताबें भी लिखी
भवभूति पर अनेक लोगों ने शोध किया और उनके जीवन पर भी उपन्यास भी लिखे गए। रामगोपाल तिवारी “विरही “ने महाकवि भवभूति और उपन्यास पद्मावत लिखा जबकि एम एल शर्मा ने पद्मावती नामक पुस्तक लिखी जिसे मध्यप्रदेश हिंदी ग्रन्थ अकादमी ने प्रकशित किया था। डॉ संध्या भार्गव ने पद्मावत राज्य और भवभूति को लेकर शोध किया जिस पर उन्हें जीवाजी विवि से पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई हैं। उन्होंने यह शोध कार्य हरीहरनिवास द्विवेदी के मार्गदर्शन में किया।