प्रमोद भार्गव | हम जानते हैं कि काशी विश्वनाथ की नगरी वाराणसी से जल परिवहन का नया इतिहास रचा हो गया है। सुनहरे अक्षरों में लिखे गए इस अध्याय का श्रीगणेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। प्रदूषण मुक्त जल परिवहन की यह सुविधा उद्योग जगत और देश की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का द्वार खोल रही है। 5369.18 करोड़ लागत की यह परियोजना 1383 किमी लंबी है, जो हल्दिया से वाराणसी तक के गंगा नदी में जलमार्ग का रास्ता खोलती है। इसे राश्ट्रीय जलमार्ग-1 नाम दिया गया है। इसे भारत सरकार एवं विष्व बैंक द्वारा आधी-आधी धनराषि खर्च करके अस्तित्व में लाया गया है। अब यहां 1500 से 2000 टन के बड़े मालवाहक जहाजों की आवाजाही नियमित हो गई है। इसके तहत तीन मल्टी माॅडल टर्मिनल वाराणसी, साहिबगंज व हल्दिया में बनाए गए हैं। साथ ही दो इंटर माॅडल टर्मिनल भी विकसित किए जा रहे हैं। वाराणसी में इस टर्मिनल का लोकार्पण नरेंद्र मोदी ने कोलकाता से आए जहाज से कंटेनर को उतारने की प्रक्रिया को हरी झंडी दिखाकर किया था। जहाजों को खाली करने के लिए जर्मनी से उच्चस्तरीय क्रेनें आयात की गई हैं। इन कंटेनरों में कोलकाता से औद्योगिक सामग्री लाई जा रही है। इधर से कंटेनरों में खाद व अन्य औद्योगिक उत्पादन भेजे जाने का सिलसिला जारी है। ये मालवाहक जहाज पूर्वी भारत के प्रदेशों के बंदरगाहों तक आसानी से पहुंच रहे हैं। कालांतर में इस जलमार्ग से
एशियाई देशों में भी ढुलाई आसान होगी। इस जलमार्ग से सामान ढुलाई के अलावा पर्यटन उद्योग को भी बढ़ावा मिल रहा है। इससे बिहार, झारखंड, पष्चिम बंगाल सहित पूर्वी एषिया तक क्रूज टूरिज्म की नई षुरूआत हो चुकी है। इससे ‘नमामि गंगे‘ परियोजना के तहत गंगा सफाई का जो अभियान चल रहा है, उसे भी मदद मिलने लगी है। 23000 करोड़ की इस परियोजना के अंतर्गत फिलहाल 5000 करोड़ की परियोजनाएं क्रियान्वित हैं।
इस परियोजना के पहले चरण की षुरूआत केंद्रीय सड़क व जहाजरानी मंत्री नितीन गडकरी ने वाराणसी के अधेरेष्वर रामघाट पर एक साथ दो जलपोतों को हरी झंडी दिखाकर, हल्दिया के लिए रवाना करके की थी । इन जहाजों के नाम वीवी गिरी और वसुदेव हैं। इसी के साथ मोक्षदायिनी गंगा नदी में जल परिवहन की ऐतिहासिक षुरूआत हो गई थीं। राजग सरकार की भविष्य में नदियों पर 111 जलमार्ग विकसित करने की योजना है। ऐसा संभव होता है तो एक साथ कई लाभ होंगे। नदियों के अविरल बहने के प्रबंध होंगे। इससे नदियां प्रदूशण-मुक्त बनी रहेंगी। सड़क व रेल मार्गों पर माल की ढुलाई घटेगी। इससे इन दोनों ही मार्गों पर यातायात सुगम होगा और दुर्घटनाएं घटेंगी। सड़को के चैड़ीकरण करने के लिए लाखों की संख्या में वृक्षों को काटने की जरूरत नहीं रह जाएगी। इसके अलावा यात्रा खर्च में भी कमी आएगी। कालांतर में यात्री जहाज नदियों की जल सतह पर तैरते दिखाई देंगेे। यह देश का दुर्भाग्य ही रहा है कि हमने आजादी के 75 साल में नदियों पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया और उन्हें कचरा डालने व मल-मूत्र बहाने का आसान माध्यम मान लिया। जबकि ये नदियां जीवनदायी होने के साथ यातायात का सरल माध्यम प्राचीन समय से ही रही हैं। हालांकि देश में 35 साल पहले भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण बन गया था, लेकिन इस दिशा में कोई उल्लेखनीय काम नहीं हो सका।
दुनिया मेें आई औद्योगिक क्रांति के पहले एक जमाना वह था, जब भारत की नदियों और समुद्र में यात्री व माल परिवहन की ढुलाई करीब 90 प्रतिशत जहाजों से होती थी। ये मार्ग अंतर्देशीय तो थे ही, अंतरराष्ट्रीय भी थे। प्राचीन भारत में पांच प्रमुख जलमार्ग थे। ये स्वाभाविक रूप में प्रकृति द्वारा निर्मित मार्ग थे। नदियां निरंतर बहती थीं और षहरी कचरा इनमें नहीं डाला जाता था, इसलिए ये जल से लबालब भरी रहती थीं। नतीजतन बड़े-बड़े जलपोतों की आवाजाही निर्बाध बनी रहती थी। ये पांच मार्ग पूर्वी धरती में गंगा और उसकी सहायक नदियों में, पष्चिम भारत में नर्मदा के तटीय क्षेत्रों में, दक्षिण भारत में कृश्णा व गोदावरी के तटीय इलाकों में और पूर्वोत्तर भारत में ब्रह्मपुत्र व महानदी के तटीय क्षेत्रों में विकसित थे। यानी संपूर्ण भारत में जलमार्गों का जाल बिछा था। समुद्र में चीन, श्रीलंका, मलाबार, ईरान की खाड़ी और लाल सागर तक जलमार्ग थे। इन्हीं जलमार्गों पर भारत के बड़े नगर बसे थे। हमारे ये जलमार्ग दो कारणों से नश्ट हुए। एक अंग्रेजी हुकूमत के दौरान रेल व सड़क मार्गों के विकसित करने और दूसरा, अंग्रेजों द्वारा शड्यंत्रपूर्वक भारतीय जहाजरानी उद्योग को चैपट करने की मंषा के चलते किया। नतीजतन ये पारंपरिक मार्ग खत्म होते चले गए। अलबत्ता आजादी के बाद हमने नदियों के किनारे पर अवैध निर्माण तो किए ही, नदियों को कचरे से पाटना भी शुरू कर दिया, इस वजह से नदियों के जहां पाट संकीर्ण हुए, वहीं इनकी तलहटी में गाद जमती चली गई। गोया, नदियों की जलग्रहण क्षमता कम हुई और जहाजरानी उद्योग सिमटता चला गया। हालांकि प्लासी के युद्ध के बाद से ही जहाजरानी उद्योग पर संकट के बादल मंडराने शुरू हो गए थे। जबकि इस समय तक जहां पुर्तगालियों के पास 3, डच लोगों के पास 5, फ्रांसीसियों के पास 1, डेनमार्क के पास 1, अमेरिका के पास 15 और ईस्ट इंडिया कंपनी के पास 40 जहाज थे। इन्हीं के माध्यम से वस्तुओं का आयात-निर्यात किया जाता था। इनका निर्माण भारत के शिल्पकार देशज संसाधनों से करते थे। अंग्रेजों की निगाह में जब जहाजरानी उद्योग की सफलता की कहानी सामने आई तो उन्होंने इसे नेस्तनाबूद करने की साजिश रच दी। भारतीय जहाजों को देश से बाहर जाने और देश की ही समुद्री सतह पर नए नियम बनाकर व्यापार को प्रतिबंधित कर दिया। यह नियम चार्टर एक्ट के जरिए वजूद में लाया गया। 1796 में इस एक्ट में एक विषेश धारा संलग्न करके प्रावधान किया कि ‘ब्रिटेन या भारत के
व्यापारी या कंपनी के मुलाजिम जो माल भारत से ब्रिटेन लाएं अथवा ब्रिटेन से भारत लाएं, वे माल केवल उन्हीं जहाजों में ला सकेंगे, जो कंपनी के अधीन होंगे।‘ इस कानून से इस उद्योग की रीढ़ टूट गई और जहाजरानी उद्योग चौपट होता चला गया।
अब यह खुशी की बात है कि लुप्त हुए मार्ग और जहाजरानी उद्योग को जीवनदान मिल रहा है। अंतर्राज्यीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही तरह के मार्ग विकसित किए जा रहे हैं। फिलहाल देष में रेलमार्गों की हिस्सेदारी महज 3.6 फीसदी है। 2018 के अंत तक इसे 7 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया था, जो पूरा हुआ। चीन में जल परिवहन की हिस्सेदारी 47 प्रतिशत, अमेरिका में 21 और कोरिया व जापान में 40 प्रतिशत से ज्यादा है। अब यदि 111 नदियों पर जलमार्ग विकसित हो जाते हैं, तो तय है कि जल परिवहन क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा। नितिन गडकरी ने 2020 तक इससे 200 लाख टन माल निर्यात करने की उम्मीद जताई थी, जो लक्ष्य प्राप्त कर चुकी है। इससे एक साथ षहरी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बदलाव आ रहा है। किसान और कृशि उत्पादों के व्यवसाय से जुड़े लोगों को अंतरराज्जीय व अंतर्देषीय वितरण में सीधा लाभ मिलने लगा है। दरअसल जल परिवहन बेहद सस्ता और सुगम है। सड़क, रेल व जल मार्ग पर प्रति यात्री खर्चा क्रमषः डेढ़ रुपए, एक रुपए और 30 पैसे प्रति किलोमीटर आता है। एक जहाज से 15 रेल वैगन या 60 ट्रक के बराबर माल ढुलाई होती है। इस कारण ईंधन की भी बड़ी मात्रा में बचत होती है। एक लीटर ईंधन में सड़क पर 25 टन प्रति किमी, रेल से 95 टन प्रति किमी, जबकि जलमार्ग से 215 टन प्रति किमी माल की ढुलाई की जा सकती है। साफ है, जल मार्ग में ईंधन कम खर्च होने से धन की बचत होती है और पर्यावरण का विनाष नहीं होता है। जलमार्ग का विकास भी रेल व सड़क मार्ग की तुलना में सस्ता पड़ता है। इसमें न कृशि भूमि के अधिग्रहण की जरूरत पड़ती है और न ही जंगलों को काटने की जरूरत रह जाती है।
अभी वाराणसी से हल्दिया तक का जलमार्ग परिवहन के लिए षुरू हुआ है। इसे जल्दी ही प्रयागराज और फिर कानपुर तक बढ़ा दिया जाएगा। प्रयागराज से हल्दिया तक की दूरी 1620 किमी है। यह सबसे लंबा जलमार्ग बनेगा। यह मार्ग गंगा, भागीरथी औैर हुगली नदी से गुजरेगा। फिलहाल हल्दिया, फरक्का और पटना में स्थायी टर्मिनल हैं, जबकि कोलकाता, भागलपुर और प्रयागराज में फ्लोटिंग टर्मिनल हैं। इसे पहला राश्ट्रीय जलमार्ग घोशित कर दिया गया था। दूसरा बड़ा जलमार्ग ब्रह्मपुत्र नदी पर सादिया से असम के ध्रुवी तक फैला है। 891 किमी लंबा होने के कारण यह उत्तर-पूर्व का सबसे बड़ा जलमार्ग है। तीसरा बड़ा जलमार्ग केरल के कोल्लम से कोट्टापुरम तक फैला है। इसकी लंबाई 205 किमी है। यह भारत का ऐसा जलमार्ग है, जहां भर-पूर जल 12 महीने भरा रहने के कारण हमेषा नौपरिवहन होता रहता है। चैथा बड़ा जलमार्ग काकीनाडा से पुड्डूचेरी तक है। यह गोदावरी व कृश्णा नदियों से गुजरता है। यह तमिलनाडू और आंध्रप्रदेष में आता है। पांचवा बड़ा जलमार्ग ओडिषा से पष्चिम बंगाल को जोड़ता है। यह मार्ग ब्राह्मणी नदी के पूर्वी तट नहर मताई नदी और महानदी डेल्टा से गुजरता है। इसके जरिए कोयला, उर्वरक और लोहा का परिवहन होगा। छठा जलमार्ग असम में प्रस्तावित है। यह लाखीपुरा से भंगा तक जाता है, जो बाराक नदी पर है। इस जलमार्ग से सिलचर से मिजोरम तक व्यापार बढ़ाने में मदद मिलेगी नितिन गडकरी ने राज्यों में अंतर्देशीय जलमार्गों के विकास के लिए संयुक्त उद्यम बनाने की दृष्टि से राज्यों को केंद्र सरकार से हाथ मिलाने की अपील की है। इन जलमार्गों पर जल्दी काम इसलिए शुरू नहीं हो पा रहा है, क्योंकि प्रस्तावित परियोजनाओं को राष्ट्रीय
हरित न्यायाधिकरण से स्वीकृतियां नहीं मिल पा रही हैं। हालांकि प्रयागराज से हल्दिया के बीच जो जलमार्ग प्रस्तावित है, उसे एनजीटी ने हरी झंडी दे दी है। गंगा नदी पर बनने वाले इस महत्वाकांक्षी अंतर्देशीय जलमार्ग योजना पर अब काम भी शुरू हो चुका है। यह जलमार्ग प्रयागराज से भदोही, मिर्जापुर, चंदौली, वाराणसी, मुगलसराय, बलिया, गाजीपुर, आरा, बक्सर, पटना, मोकामा, मु्रगेर, भागलपुर, फरक्का, कोलकाता और हल्दिया को परस्पर जोड़ देगा। इससे व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि तो होगी ही बड़ी संख्या में कुषल और अकुषल युवाओं को रोजगार भी मिलेगा।
गंगा नदी के किनारे बसे हमारे अधिकांष षहर धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं व परंपराओं से जुड़े हैं। प्राचीन मंदिर एवं खगोलीय घटना से जुड़े स्थल भी इन षहरों में हैं। साफ है, पर्यटन को भी जल यातायात सुगम हो जाने से बढ़ावा मिलेगा। नतीजतन आर्थिक गतिविधियों में भी तेजी आ रही है। अंतरराश्ट्रीय जलमार्ग की दृश्टि से एक बड़ी उपलब्धि भारत और म्यांमार को जल्द मिलने वाली है। भारत सरकार द्वारा यह मार्ग विकसित किया जा रहा है। सितवे बंदरगाह से इस परियोजना को जमीन पर उतारना संभव हो पाया है। इसका असली फायदा लेने के लिए भारत सरकार द्वारा भारत और म्यांमार के बीच सीमा पर 110 किलोमीटर लंबी सड़क भी बनाई जा रही है। इस परियोजना के पूरा होने के बाद हमें न केवल व्यापारिक और रणनीतिक लाभ मिलेगा, बल्कि पूर्वोत्तर राज्यों के विकास को भी नए पंख मिल जाएंगे। याद रहे दुनिया का सबसे पहला जलमार्ग कन्याकुमारी से श्रीलंका तक भगवान श्रीराम के नेतृत्व में वानर सेना ने निर्मित किया था। इस मार्ग निर्माण का तकनीकी ज्ञान नल और नील इन दो शिल्पकारों ने दिया था। अमेरिका की प्रसिद्ध वैज्ञानिक संस्था नासा ने इस रामसेतु के चित्र 1993 में अंतरिक्ष में स्थापित उपग्रह से लिए थे। इन तस्वीरों के अध्ययन के बाद स्थापित किया गया कि यह दुनिया का मानव-निर्मित पहला सेतु है। इस रामसेतु के निर्माण और उपयोग का वर्णन वाल्मीकि रामायण से लेकर संस्कृत के अनेक प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।