ग्वालियर।सावन के आखिरी सोमवार ग्वालियर के अचलेश्वर महादेव मंदिर पर भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली यहां भगवान भोलेनाथ का चांदी से निर्मित नाग से विशेष श्रृंगार भी किया गया जिसके दर्शन का लाभ लेने मंदिर के बाहर भक्तों की कतारें देखने को मिली, भक्तों की भीड़ को देखते हुए मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा यहां विशेष इंतजाम भी किए.
श्रावण मास के अंतिम सोमवार को भगवान अचल नाथ के दरबार में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली रात 12:00 के बाद ही यहां भक्तों का पहुंचना शुरू हो गया था और तड़के तक मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी-लंबी कतारें देखने को मिली. भक्तों की भारी भीड़ को देखते हुए मंदिर प्रबंधन द्वारा भी यहां विशेष इंतजाम किए गए तो वही भगवान अचल नाथ ने ढाई किलो से अधिक चांदी से निर्मित नाग को अपने गले में धारण किया । देवाधिदेव महादेव के इस श्रृंगार को देख भक्तगण भी प्रफुल्लित नजर आए और पूरा मंदिर परिसर हर हर महादेव के जयकारों से गूंज उठा. इस नाग का निर्माण कालीचरण दर्शनलाल द्वारा तैयार किया गया है। आठ साल पहले कमल शाह ने एक किलो से अधिक वजनी का सोने का मुकुट भगवान अचलनाथ को अर्पित किया था। अचलेश्वर महादेव पहुंचे भक्तों ने महादेव शिवलिंग रूप का जलाभिषेक व बेलपत्र अर्पित कर पूजन भी किया। इसके साथ ही रक्षाबंधन पर्व को देखते हुए बहनों ने अपने भाइयों के लिए भी भगवान से प्रार्थना की.
अचलेश्वर महादेव के बारे में कहा जाता है कि ये स्वयंम्भू शिवलिंग हैं। करीब 750 साल पहले ये स्वयं प्रकट हुआ था। बाद में यहां छोटा सा मंदिर बना दिया गया था। ग्वालियर पर कब्जा करने के बाद सिंधिया राजवंश ने अठारवीं सदी में ग्वालियर को राजधानी बनाया। सिंधिया राजवंश ने राजकाज चलाने के लिए उस दौर में महाराजबाड़ा बनवाया। इसके साथ ही किले के नीचे जयविलास महल बनाया था।महाराजबाड़ा से जयविलास महल तक जाने वाले रास्ते में पेड़ के नीचे ये शिवजी का मंदिर था। सिंधिया राजवंश के राजाओं की सवारी इसी रास्ते से निकलती थी। रास्ते में बने छोटे से मंदिर को तत्कालीन राजा ने इसे हटाने के लिए कहा। जब राजा ने शिवलिंग को हटाने की कोशिश की तो ये शिवलिंग हिला तक नहीं। बाद इसे खोदने की कोशिश हुई, लेकिन गहराई तक शिवलिंग निकलता चला गया। आखिर में राजा ने हाथियों से जंजीरें बांधकर शिवलिंग को उखाड़ना चाहा, लेकिन हाथियों ने भी जोर लगा लगा कर जबाव दे दिया। जंजीरें टूट गई तो आखिर में थक हारकर सिंधिया के सेनापति भी महल लौट गए।इसी रात सिंधिया राजा को शिव जी ने सपना दिया। जिसमें शिवजी ने प्रकट होकर कहा कि मैं अचल हूं यहां से मुझे हटाने की कोशिश मत करो। दूसरे दिन राजा ने अपने खास लोगों को वाकया सुनाया। फिर अगले दिन राजा ने कारीगर बुलवाए और फिर रास्ते पर स्थित इस मंदिर को भव्य बनवाया और इस शिवलिंग को अचलनाथ के नाम से पूजना शुरू किया। इस तरह ये शिव मंदिर अचलेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।