– देव श्रीमाली-
ग्वालियर। ग्वालियर चम्बल अंचल के प्रतिष्ठित नेता राम निवास रावत ने आज सोमवार को मध्यप्रदेश के डॉ मोहन यादव के मन्त्रिमण्डल में कैबिनेट मंत्री की शपथ ली। प्रदेश में विजयपुर विधानसभा सीट से छह बार काँग्रेस के टिकिट पर चुनाव जीत चुके रावत ने अपनी ताज़ा सियासी पारी भाजपा के साथ शुरू की है । उच्च शिक्षित रावत की सियासत में आने की कथा भी बड़ी रोचक है । उनका चयन सिविल जज की लिखित परीक्षा में हो गया था लेकिन अचानक उनके जीवन मे बड़ा बदलाव आया और बड़ी रिस्क लेकर उन्होंने सियासत में कदम रख दिया वह भी मंडी संचालक का चुनाव लड़कर।
गोल्ड मेडल से ली थी स्नातकोत्तर डिग्री
श्योपुर जिले की विजयपुर विधानसभा सीट में आने वाले ग्राम सुनवई में जन्मे रामनिवास के पिता सरकारी कर्मचारी थे और समाजसेवी भी थे । उनको लोग इलाके में बहुत आदर सम्मान देते थे। राम निवास उनके बड़े बेटे थे । वे शुरू से ही मेधावी छात्र थे । उस समय विजयपुर मुरैना जिले का दूरस्थ हिस्सा था। जंगल और पहाड़ों के बीच स्थित श्योपुर और विजयपुर में न आवागमन के साधन थे और न ही शिक्षा की कोई व्यवस्था । इसीलिए उनके पिता ने हायर सेकेंडरी पास होते ही उन्हें उच्च शिक्षा लेने शिवपुरी भेज दिया। यही से उन्होंने पहले बीएससी की फिर इतिहास से एमए किया और उसमें अब्बल नम्बर लाकर गोल्ड मेडल हासिल कर लिया। इस दौरान वे छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे। अचानक उनको सिविल जज बनने का ख्याल आया तो उन्होंने ग्वालियर आकर एलएलबी में एडमिशन ले लिया।
जज बनते बनते बन गए नेता
एलएलबी करने के बाद उन्होंने एलएलएम में प्रवेश लिया उसी समय एमपीएससी में सिविल जज की पोस्ट निकली तो रावत उसकी तैयारी में जुट गए। उन्होंने इसकी लिखित परीक्षा भी पास कर ली लेकिन अचानक उनके दोस्तों ने उन्हें राजनीति में जाने की सलाह दी। वे सियासत से अनभिज्ञ थे लेकिन फिर इस दिशा में मुड़ गए और अपने पिता जी को अपनी इच्छा बताई । पिता जी बहुत नाराज हुए लेकिन बाद में वे मान गए । उस समय विजयपुर कृषि उपज मंडी समिति के चुनाव चल रहे थे । उन्होंने वहां संचालक पद के लिए नामांकन भरा । उनके पिता के प्रभाव और एक उच्च शिक्षित व्यक्ति के मैदान में होने से युवा उनके समर्थन में आ गए और वे निर्विरोध डायरेक्टर और फिर निर्विरोध ही अध्यक्ष चुन लिए गए।
सिंधिया ने बुलाकर ठोकी पीठ , खिलाई मिठाई
नए लड़के के निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिए जाने की खबर तब अखबारों की सुर्खी बन गयी । यह खबर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री माधव राव सिंधिया तक पहुंची तो उन्होंने रावत को मिलने के लिए बुलाया और उन्हें मिठाई खिलाकर पीठ ठोंकी । इसके बाद सिंधिया से उनकी नजदीक बढ़ गई ।
1990 में सिंधिया ने उन्हें विजयपुर सीट से काँग्रेस का टिकिट दे दिया । रावत सियासत में नए थे लिहाजा तत्कालीन मठाधीशों ने उनका जमकर विरोध किया । लेकिन रावत ने वहां युवाओं को इकट्ठा किया और अपना प्रचार अभियान शुरू किया । उस समय एमपी में कांग्रेस की हालत खराब हो गए। अंचल की 34 में से कांग्रेस सिर्फ 3 सीट जीत सकी । उसमें भी रावत ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की ।
कांग्रेस में कद भी बढ़ा लेकिन टांग भी खींची गई
इसके बाद वे प्रदेश के दिग्गज काँग्रेस नेता के रूप में स्थापित हो गए । हालांकि कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी लगातार उनका पीछा करती रही । कांग्रेस का एक गुट उन्हें सिंधिया का साथ छोड़ने के लिए तरह तरह के लालच और दबाव देते रहे लेकिन वे नही माने । खुद रावत कहते है कि इस बजह से मुझे 1998 में खुद सरकारी मशीनरी के जरिये हरवाया गया । 2018 में वे सबलगढ़ से तैयारी कर चुके थे लेकिन एन वक्त पर विजयपुर से ही टिकिट दे दिया गया जिसके चलते मैं हार गया। 2019 में काँग्रेस ने उन्हें लोकसभा चुनाव में मुरैना सीट से उतारा लेकिन हार गए। लोकसभा चुनावों के ठीक पहले उन्होंने भाजपा का हाथ थाम लिया जिसका असर मुरैना, ग्वलियर ,गुना और राजगढ़ सीटों पर पड़ा । सभी सीटें भाजपा जीत गई। इसके इनाम स्वरूप भाजपा ने उन्हें केबिनेट मंत्री पद की शपथ दिलाई । अब उन्हें पहली बार भाजपा के टिकिट पर चुनाव लड़ना होगा।